BHU में मंच पर उभरी स्वतंत्रता के संघर्ष में महात्मा गांधी की व्यथा

BHU में मंच पर उभरी स्वतंत्रता के संघर्ष में महात्मा गांधी की व्यथा


बीएचयू में कृषि विज्ञान संस्थान के शताब्दी भवन प्रेक्षागृह में मंगलवार को महात्मा गांधी के जीवन पर आधारित लघु नाटक ‘गांधी, द मिस्टेकेन आइडेंटिटी’ का मंचन हुआ। कला संकाय के छात्र-छात्राओं ने स्वतंत्रता के संघर्ष में महात्मा गांधी की व्यथा का बखूबी मंचन किया। गांधी जी के त्याग को भी प्रदर्शित किया। 


लाइट व साउंड के माध्यम से नाटक के प्रमुख दृश्य प्रभावशाली बन गए। इस नाटक का निर्देशन रवि कुमार राय व ओम प्रकाश ने किया। गांधी का किरदार ओम प्रकाश,  सरदार पटेल का किरदार पारितोष झा, पंडित नेहरू का किरदार शुभ आनंद ने निभाया। मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका में सिद्धार्थ थे। अंशु, श्रद्धा, रोहन सतपति, राहुल कुमार, अविनाश ने भी नाटक में भूमिका अदा की। बाल स्वराज के आयोजन में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय का सहयोग रहा। अभिकल्प नवप्रवर्तन केंद्र, बीएचयू की राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई और सरदार पटेल छात्रावास भी नाटक के आयोजन में सहभगी रहे। स्वागत व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राकेश उपाध्याय ने दिया।


कार्यक्रम में बाल संरक्षण से जुड़े विषय पर बोलते हुए प्रोफेसर राकेश उपाध्याय ने बताया कि एक अच्छे भविष्य की दुनिया के निर्माण के लिए बचपन को संवारना बेहद जरूरी है। आज तकनीक के बढ़ते दायरे के कारण अनेक कुरीतियां भी तेजी से बढ़ी हैं। अश्लील सामग्रियों, पोर्नोग्राफी के बढ़ते कारोबार के कारण दुनिया भर में बच्चों के प्रति हिंसा व अपराध बढ़े हैं। ऐसे में हमें बाल संरक्षण के प्रति बेहद सचेत रहने की जरूरत है। गाँधी के बारे में उन्होंने कहा कि उन्होंने कोई नया पंथ अथवा वाद नहीं चलाया बल्कि भारत में चली आ रही पुरानी परंपरओं को ही भारतीय जनमानस के मध्य पुनर्स्थापित किया।


व्याख्यान माला में 'सामाजिक पुनर्निर्माता के रूप में महात्मा गांधी' विषय पर बोलते हुए वरिष्ठ पत्रकार बनवारी ने भारतीय सभ्यता को परिभाषित करते हुए चार प्राचीन व पौराणिक शहरों काशी, अयोध्या, मथुरा और उज्जैनी का हवाला देते हुए ग्रामीण संस्कृति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गांधीजी की अंतर्दृष्टि भारतीय संस्कृति को लेकर बेहद व्यापक रही है। कोरोना वायरस और उसके लेकर विश्व में व्याप्त भय के संदर्भ में बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत एक ऐसा देश है जिसके लोगों में खाद्य अखाद्य पदार्थों का विवेक हमेशा से मौजूद रहा है। उन्होंने बताया कि गांधीजी ने अपने जीवन में सत्य अहिंसा अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रह पांचों यमों को बखूबी उतारा।


कार्यक्रम में संबोधित करते हुए प्रख्यात गाँधीवादी चिंतक अव्यक्त ने कहा कि आज के युवा में स्ट्रेस बहुत बढ़ गया है। युवाओं को स्ट्रेस छोड़ व्यवहारिक जीवन को जीने की जरूरत हुई है। इसके लिए उन्हें बापू से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने ने बच्चों की शिक्षा परंपरा को देशज बनाने पर जोर दिया। इस अवसर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ० नीरज त्रिपाठी एवं छात्र अधिष्ठाता प्रो. महेंद्र कुमार सिंह भी उपस्थित रहे। प्रो. सिंह ने महात्मा गांधी को समर्पित दिनकर की कविता की चंद पंक्तियां 'सारे संबल के तीन खंड दो वसन एक सूखी लकड़ी, सारी सेनाओं का प्रतीक पीछे चलने वाली बकरी' को उदधृत करते हुए कहा कि गांधी को समझने उनसे जुड़े व्याख्यानों आदि से पूर्व हमें सर्वप्रथम गांधी जी का स्वयं का लिखा हुआ विचार पढ़ना चाहिए क्योंकि दुनिया में शायद ही कोई लेखक अथवा वक्ता उनके समीप पहुंच पाये।


इस अवसर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल छात्रावास में 1-2 मार्च को आयोजित महात्मा गांधी को समर्पित दीवार चित्रकला प्रतियोगिता के विजेताओं और प्रतिभागियों को सम्मानित कर किया गया। जिसमें इज़हार अंसारी, निखिल राय व शिवम सेठ को क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय पुरस्कार व कैश प्राइज से सम्मनित किया गया। निर्णायक मंडल के प्रो. सुशीला सिंह, प्रो. शांति स्वरूप सिन्हा, प्रो. सुनील विश्वकर्मा, को भी स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया गया। सरदार पटेल हॉस्टल के श्रीनाथ को सर्वश्रेष्ठ  कर्मचारी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक डॉ० धीरेंद्र राय ने अतिथियों का पुष्प गुच्छ, स्मृति चिन्ह व अंगवस्त्र देकर स्वागत किया।